महर्षि वाग्भट का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: हृदय रोग का कारण रक्त की अम्लता, समाधान लौकी जैसे क्षारीय आहार में

भारतीय आयुर्वेद ग्रंथ अष्टांग हृदयम में महर्षि वाग्भट ने हृदय स्वास्थ्य के लिए कई सूत्र बताए हैं। उनके अनुसार, जब रक्त में अम्लता (Blood Acidity) बढ़ जाती है, तो यह दिल की नलियों में रुकावट (Blockage) का कारण बन सकती है। उनका सुझाव था कि ऐसे समय में व्यक्ति को क्षारीय (Alkaline) आहार जैसे लौकी, तुलसी और पुदीना का सेवन करना चाहिए ताकि रक्त संतुलित रहे।
हालांकि आधुनिक चिकित्सा के अनुसार हृदय रोग कई कारणों (जैसे कोलेस्ट्रॉल, जीवनशैली, तनाव) से होते हैं, इसलिए किसी भी घरेलू उपाय से पहले चिकित्सकीय परामर्श आवश्यक है।
Delhi:The asia prime
भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद में हृदय रोगों के बारे में गहरी जानकारी दी गई है। लगभग 3000 वर्ष पहले महर्षि वाग्भट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अष्टांग हृदयम (Ashtang Hrudayam) में 7000 से अधिक सूत्र लिखे थे, जिनमें से कई आज भी मानव शरीर की कार्यप्रणाली को समझाने में सहायक हैं।
महर्षि वाग्भट के अनुसार जब किसी व्यक्ति को हृदय रोग या हृदयाघात (Heart Attack) की आशंका होती है, तो इसका मुख्य कारण रक्त की अम्लता (Blood Acidity) होती है। जब शरीर में अम्लीय तत्व अधिक हो जाते हैं, तो रक्त का प्रवाह कठिन हो जाता है और यह दिल की नलियों में अवरोध (Blockage) उत्पन्न कर सकता है।
वे बताते हैं कि जैसे पेट में अम्लता (Acidity) से जलन या खट्टी डकारें आती हैं, उसी प्रकार रक्त की अम्लता भी बढ़ सकती है। यह स्थिति तब होती है जब व्यक्ति का भोजन और जीवनशैली संतुलित नहीं होती।
महर्षि वाग्भट इसके समाधान के लिए कहते हैं कि जब शरीर में अम्लता बढ़ जाए, तो क्षारीय (Alkaline) पदार्थों का सेवन करना चाहिए। जैसे कि लौकी (Bottle Gourd), तुलसी, पुदीना और सेंधा नमक। इनका नियमित उपयोग शरीर की अम्लता को कम करता है और रक्त को संतुलित रखता है।
वाग्भट के अनुसार लौकी सबसे अधिक क्षारीय आहारों में से एक है। इसके सेवन से रक्त की अम्लता कम होती है और हृदय स्वस्थ रहता है। लौकी का रस सुबह खाली पेट या नाश्ते के बाद लिया जा सकता है। तुलसी और पुदीने के पत्ते मिलाने से यह और अधिक लाभकारी हो जाता है।
हालांकि, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार हृदय रोग केवल रक्त की अम्लता के कारण नहीं होते। इन पर आनुवंशिकता, कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप, मोटापा, तनाव और जीवनशैली जैसी कई चीज़ें प्रभाव डालती हैं। इसलिए किसी भी आयुर्वेदिक उपाय को अपनाने से पहले चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है।
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लौकी का रस पीना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है, लेकिन अधिक मात्रा में या गलत तरीके से सेवन करने से उल्टी या अन्य दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। इसीलिए विशेषज्ञ डॉक्टर या आयुर्वेदाचार्य की देखरेख में ही कोई भी उपचार करें।
भारत की चिकित्सा विरासत हमें यह सिखाती है कि शरीर को संतुलन में रखना ही स्वास्थ्य का मूलमंत्र है। संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम और सकारात्मक सोच से हम अपने हृदय को लंबे समय तक स्वस्थ रख सकते हैं।
⚠️ चेतावनी (Disclaimer):
यह लेख केवल आयुर्वेदिक दृष्टिकोण और जनजागरूकता के लिए है। यह किसी भी प्रकार की मेडिकल सलाह नहीं है। हृदय रोग या किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए हमेशा योग्य चिकित्सक या कार्डियोलॉजिस्ट से परामर्श लें।
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