“एक गोली, पंद्रह नाम और सन्नाटा: हरियाणा की नौकरशाही में , जलन और जान की कहानी”
“फाइलों से फायर तक — सीनियर आईपीएस वाई पूरन कुमार की आत्महत्या ने खोला अफसरशाही के भीतर सड़ते भेदभाव का चेहरा।”

हरियाणा की प्रशासनिक व्यवस्था में 7 अक्टूबर की सुबह एक ऐसा धमाका हुआ जिसने पूरे देश को हिला दिया। सीनियर आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार ने चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित सरकारी आवास में खुद को गोली मारकर जान दे दी। पर यह केवल आत्महत्या नहीं, बल्कि नौकरशाही की चमकती दीवारों के पीछे पल रहे भेदभाव, सत्ता संघर्ष और मानसिक उत्पीड़न का परिणाम था।
चंडीगढ़ ब्यूरो:TAP News
पूरन कुमार के सुसाइड नोट ने उस सन्नाटे को तोड़ दिया जिसे “प्रशासनिक अनुशासन” कहा जाता है। नोट में 15 आईएएस-आईपीएस अफसरों के नाम दर्ज हैं — उन पर जातिगत अपमान, धमकी और साजिश के आरोप हैं। चंडीगढ़ पुलिस ने इस आधार पर एफआईआर नंबर 156 दर्ज कर ली है, जिसमें डीजीपी शत्रुजीत कपूर, रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारणिया समेत 14 अफसर आरोपी हैं। यह भारत में पहली बार हुआ है जब इतने सीनियर अफसरों पर एक साथ एससी/एसटी एक्ट और भारत न्याय संहिता की धाराओं में मुकदमा चला है।
पूरन कुमार ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि उन्हें लगातार “साइड पोस्टिंग” दी जाती रही, जातिगत तंज झेलने पड़े और मानसिक रूप से तोड़ा गया। उनका कैरियर इस भेदभाव की कहानी बयां करता है — काबिल अफसर होने के बावजूद उन्हें बार-बार ऐसे पदों पर भेजा गया जहाँ उनकी क्षमता का उपयोग नहीं हुआ। आखिर में, निराशा और अपमान ने उनकी जान ले ली।
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उनकी पत्नी आईएएस अमनीत पी. कुमार ने मुख्यमंत्री नायब सैनी को दो रिपोर्टें सौंपी हैं — पहली में दो अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई है, जबकि दूसरी में सभी 15 अफसरों की गिरफ्तारी की। उन्होंने कहा — “यह सिर्फ आत्महत्या नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक मर्डर है।”
एफआईआर के बाद राज्य के एससी समुदाय से जुड़े अफसरों ने पूरन कुमार के परिवार के समर्थन में खुलकर आवाज उठाई है। यह नौकरशाही के भीतर “मौन संस्कृति” टूटने का संकेत है। मुख्यमंत्री ने निष्पक्ष जांच का भरोसा दिया है, पर सवाल यह है कि क्या यह मामला सिर्फ एक और “जांच रिपोर्ट” बनकर रह जाएगा या सचमुच न्याय होगा?
पूरन कुमार की मौत ने यह साबित कर दिया है कि नौकरशाही के ऊपरी पदों तक पहुँच जाने से भी कोई व्यक्ति जाति की जंजीरों से मुक्त नहीं होता। यह मामला केवल एक अफसर की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की विफलता का प्रतीक है जो “योग्यता” की जगह “पहचान” को महत्व देता है।
उनका अंतिम सवाल अब भी हवा में तैर रहा है —
“जब न्याय देने वाले ही अन्याय करने लगें, तो शिकायत किससे करें?”
यह घटना सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि सिस्टम की आत्मा की हत्या है। पूरन कुमार चले गए, लेकिन उनकी मौत नौकरशाही से यह मांग करती है कि वह अपने भीतर झाँके — और जातिगत सोच को खत्म करे, वरना हर पूरन कुमार के भीतर कोई न कोई गोली तनी रहेगी।
✍️ रिपोर्ट: सतबीर जांड़ली, स्वतंत्र पत्रकार (THE ASIA PRIME)