अरुणाचल प्रदेश की 90 बेटियों का संघर्ष: 65 KM पैदल यात्रा के बाद स्कूल में टीचर नियुक्त

अरुणाचल प्रदेश के नयंग्नो गांव की 90 बच्चियों ने स्कूल में शिक्षकों की कमी से परेशान होकर 65 किलोमीटर पदयात्रा की। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद प्रशासन हरकत में आया और स्कूल में टीचर नियुक्त किए गए। जानिए पूरा मामला।
अरुणाचल प्रदेश:THE ASIA PRIME /TAP News.
कभी-कभी छोटे-छोटे गांवों की बड़ी कहानियां पूरे देश को संदेश दे जाती हैं। अरुणाचल प्रदेश के नयंग्नो गांव की 90 बेटियों ने यह साबित कर दिया कि यदि आप अपनी समस्या को लेकर डटे रहें और आवाज उठाएं तो कोई भी ताकत आपकी अनदेखी नहीं कर सकती।
इन बच्चियों का संघर्ष उस समय शुरू हुआ जब उनके गांव के स्कूल में लंबे समय से शिक्षकों की कमी बनी हुई थी। पढ़ाई प्रभावित हो रही थी और उनकी शिकायतें बार-बार अनसुनी कर दी जाती थीं। ना जिला प्रशासन ने ध्यान दिया, ना ही शिक्षा विभाग ने। आखिरकार बेटियों ने ठान लिया कि अब वे चुप नहीं बैठेंगी।
स्कूली छात्राओं की 65 किलोमीटर की पदयात्रा ।
स्कूल की ड्रेस पहनकर ये 90 बेटियां नयंग्नो गांव से जिला मुख्यालय लेम्मी की ओर पैदल निकल पड़ीं। रास्ता आसान नहीं था। घने जंगल, ऊबड़-खाबड़ सड़कें और पहाड़ी रास्तों को पार करते हुए बच्चियों ने पूरी रात पैदल यात्रा की। सुबह होते-होते वे जिला मुख्यालय पहुंच गईं।
इन छात्राओं की सोशल मीडिया ने उठाई आवाज ।
इन बच्चियों की हिम्मत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। देशभर में लोगों ने इन्हें सलाम किया। प्रशासन की नींद तब खुली जब मामला सुर्खियों में आया। दबाव बढ़ा तो शिक्षा विभाग को हरकत में आना पड़ा। तुरंत नए अप्वाइंटमेंट्स की प्रक्रिया शुरू की गई और बच्चियों के स्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गई।
बच्चियों ने दी सीख
इन बच्चियों ने दिखा दिया कि बदलाव सिर्फ बड़े आंदोलन या धरनों से ही नहीं आता, बल्कि दृढ़ संकल्प और एकजुटता से भी लाया जा सकता है। समाज में शिक्षा के महत्व को लेकर इनकी लड़ाई आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है
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आखिर प्रसासन ओर शिक्षा विभाग से बड़ा सवाल।
यह घटना शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है। आखिर क्यों प्रशासन को तब तक कार्रवाई की जरूरत महसूस नहीं हुई जब तक बच्चियां 65 किलोमीटर की पदयात्रा पर नहीं निकल पड़ीं? यह सिस्टम की लापरवाही और संवेदनहीनता को दर्शाता है।
अरुणाचल प्रदेश की इन बेटियों ने हमें याद दिलाया कि हक के लिए आवाज उठानी जरूरी है। अगर 90 बेटियां पूरी रात चलकर अपने हक की लड़ाई जीत सकती हैं, तो बाकी समाज क्यों नहीं?