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“जर्मन अख़बार की रिपोर्ट पर उठे सवाल, भारत को लेकर बयानबाज़ी पर बवाल”

मोदी-ट्रंप फोन कॉल विवाद: जर्मन अख़बार का दावा, गोदी मीडिया का प्रचार और सच्चाई

सूत्र वाक्य

अब नॉन बायोलॉजिकल जी को भी पता है कि उनकी गोदी मीडिया की विश्वसनीयता इस कदर खत्म हो गई है कि हैडलाइन मैनेज करने के लिए विदेशी मीडिया का नाम लेना पड़ेगा।

परिचय

हाल ही में भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर यह दावा वायरल हुआ कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चार बार फोन किया लेकिन मोदी ने फोन नहीं उठाया। यह खबर जर्मन अख़बार Frankfurter Allgemeine Zeitung (FAZ) के हवाले से चलाई गई।

मगर, जब इस दावे की गहराई से जांच की गई तो पाया गया कि न तो अख़बार ने इसका कोई ठोस स्रोत बताया और न ही इस खबर की कोई पुष्टि भारत या अमेरिका की ओर से हुई।

गोदी मीडिया और विदेशी अख़बार का नाम

भारत में तथाकथित गोदी मीडिया पर अक्सर आरोप लगता है कि वह सरकार की छवि बचाने या विरोधियों को निशाना बनाने के लिए अप्रमाणित खबरें चलाता है। इस मामले में भी जब खबर को विदेशी अख़बार FAZ का हवाला देकर दिखाया गया तो सवाल खड़े हुए कि क्या यह वास्तव में खबर थी या केवल एक इमेज मैनेजमेंट का प्रयास।

सुरक्षा का पहलू: पीएम का फोन टैप हो रहा है क्या?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर यह खबर सच होती तो FAZ को यह जानकारी मिली कैसे?

प्रधानमंत्री का फोन हमेशा सुरक्षित और एन्क्रिप्टेड लाइन पर होता है। कौन कॉल कर रहा है और कितनी बार कर रहा है, यह जानकारी सुरक्षा घेरे से बाहर नहीं जा सकती। अगर यह जानकारी लीक हुई तो क्या इसका मतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री का फोन टैप हो रहा है?

अगर हां, तो यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।

अगर खबर सच होती तो?

मान लीजिए कि खबर सही है और डोनाल्ड ट्रंप ने वास्तव में मोदी को फोन किया था, तो फिर उन्होंने कॉल क्यों नहीं उठाया?

व्यापार वार्ता का मौका: उस समय भारत-अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर बड़ा विवाद चल रहा था। अगर ट्रंप सच में बात करना चाहते थे तो व्यापार में भारत को फायदा हो सकता था।

पुरानी दोस्ती: मई तक मोदी चुनावी रैलियों में ट्रंप के साथ दोस्ती की मिसालें देते नजर आए। फिर अचानक बातचीत से बचने का क्या कारण था?

बेइज़्ज़ती का डर?: क्या पीएम को डर था कि ट्रंप कोई अपमानजनक टिप्पणी कर देंगे? अगर ऐसा है तो यह भारत की गरिमा के लिए असहनीय स्थिति है।

इतिहास गवाह है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन को उसी की भाषा में जवाब दिया था।

सच्चाई क्या है?

जांच के बाद साफ हुआ कि:

जर्मन अख़बार FAZ में ऐसी कोई प्रमाणिक रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है।

भारत सरकार या अमेरिका (व्हाइट हाउस) की ओर से इस दावे की कभी पुष्टि नहीं हुई।

यह खबर केवल कुछ मीडिया हाउसेस और सोशल मीडिया पर अफवाह के तौर पर फैलाई गई।

यानी यह दावा पूरी तरह झूठा और फेक न्यूज़ है।

मीडिया की जिम्मेदारी

इस घटना से एक बार फिर यह साफ हो गया कि मीडिया का सबसे बड़ा दायित्व तथ्य-जांच (Fact-Check) करना है। बिना स्रोत के विदेशी अख़बार का नाम लेकर खबर चलाना न सिर्फ पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है बल्कि भारत जैसे बड़े लोकतंत्र की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचाता है।

निष्कर्ष

मोदी-ट्रंप फोन कॉल विवाद में गोदी मीडिया ने विदेशी अख़बार का नाम लेकर एक फर्जी खबर चलाई। असलियत यह है कि जर्मन अख़बार ने ऐसी कोई प्रमाणिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की और न ही भारत या अमेरिका की ओर से इसकी पुष्टि की गई।

इस पूरे मामले ने यह साबित कर दिया कि फेक न्यूज़ और प्रोपेगैंडा से बचना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

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