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ईरान-इज़रायल युद्ध का भारत के खेतों तक असर: ₹2000 करोड़ का बासमती कारोबार संकट में

🌾 ईरान-इज़रायल युद्ध का भारत के खेतों तक असर: ₹2000 करोड़ का बासमती कारोबार संकट में

नई दिल्ली/कांडला: The ASIA PRIME
ईरान और इज़रायल के बीच चल रहे तनाव और युद्ध के हालात का असर अब भारत की खेती और व्यापार तक पहुँच गया है। भारत का प्रमुख बासमती चावल निर्यातक क्षेत्र इस समय एक बड़े संकट से गुजर रहा है। ₹2000 करोड़ मूल्य का बासमती चावल फंसा हुआ है, और इसके सबसे बड़े खरीदार ईरान से पेमेंट रुक चुके हैं। कांडला बंदरगाह पर करीब 2.5 लाख टन बासमती चावल लटका पड़ा है, जिसे आगे भेजा नहीं जा पा रहा है।
क्या है पूरा मामला?

ईरान भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा या दूसरा सबसे बड़ा खरीदार रहा है।

चालू वित्त वर्ष (2024-25) में भारत ने ईरान को लगभग 8.55 लाख टन बासमती चावल (~₹6,374 करोड़ मूल्य) का निर्यात किया।

लेकिन ईरान-इज़रायल संघर्ष के कारण बैंकिंग चैनल बाधित हुए हैं, और 6 से 8 महीने तक पेमेंट अटक रहे हैं।

इसके चलते व्यापारी नए ऑर्डर नहीं ले पा रहे हैं और पहले से तैयार माल बंदरगाहों पर जमा है।

शिपमेंट और लॉजिस्टिक्स में बाधा

कांडला, मुंद्रा और न्हावा शेवा बंदरगाहों पर लाखों टन बासमती चावल कंटेनरों में फंसा है।

Hormuz जलडमरूमध्य, जहाँ से यह चावल ले जाया जाता है, अब एक संवेदनशील इलाका बन गया है।

कई जहाजों को या तो रास्ता बदलना पड़ा है या फिर डिलीवरी रोक दी गई है, जिससे लॉजिस्टिक लागत में भारी बढ़ोतरी हुई है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर

कुछ महीनों पहले तक बासमती की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 15–20% की वृद्धि देखी गई थी, लेकिन अब कीमतें गिरने लगी हैं।

इस स्थिति का लाभ पाकिस्तान जैसे देशों को मिल रहा है, जो ईरान से बार्टर ट्रेड कर रहे हैं।

यदि जल्द समाधान नहीं हुआ तो भारतीय बासमती की कीमतों में 10-15% गिरावट हो सकती है।

🌾 किसान और व्यापारी बुरी तरह प्रभावित

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे बासमती उत्पादक राज्यों के किसान पहले से ही महंगी खेती लागत (खाद, बिजली, पानी) से जूझ रहे हैं।

अब कीमतें गिरने पर किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी कम दाम मिल सकता है।

व्यापारियों का लगभग ₹2000 करोड़ फंसा हुआ है, जिससे नकदी संकट पैदा हो गया है।

🏛️ सरकार से मांगें
1. फंसी पेमेंट को जल्द छुड़ाने के लिए राजनयिक स्तर पर दखल।
2. ईरान के साथ विशेष बैंकिंग चैनल या क्रेडिट लाइन की व्यवस्था।
3. बंदरगाहों पर अटके चावल की शीघ्र निकासी हेतु लॉजिस्टिक सहायता।
4. किसानों के लिए राहत पैकेज, MSP की सुरक्षा और ब्याज मुक्त ऋण।

विशेषज्ञों की राय
“यदि यह स्थिति लंबे समय तक चली, तो बासमती चावल के दाम धराशायी हो सकते हैं और इसका सीधा असर लाखों किसानों की आमदनी पर पड़ेगा।”

राजेंद्र अग्रवाल, कृषि निर्यातक संघ

यह संकट केवल एक व्यापारिक रुकावट नहीं है, बल्कि यह भारत के लाखों बासमती किसानों और निर्यातकों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बनता जा रहा है। यदि सरकार और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने जल्द समाधान नहीं निकाला, तो भारतीय बासमती की वैश्विक साख, किसानों की आय और कृषि अर्थव्यवस्था तीनों को गहरा झटका लग सकता है।

अब वक्त है, ठोस कार्रवाई का!
यह सिर्फ चावल की बात नहीं — यह भारत के खेतों, किसानों और खाद्य सुरक्षा की बात है।

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