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बिजली अधिनियम के मामलों में सिविल अदालतें नहीं दे सकतीं दखल’, पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी*

*बिजली अधिनियम के मामलों में सिविल अदालतें नहीं दे सकतीं दखल’, पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी*

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि बिजली अधिनियम 2003 के तहत आने वाले मामलों में सिविल अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 145 एक व्यापक रोक लगाती है जो कई धाराओं पर लागू होती है। विशेष न्यायालय ही दंड या मुआवजा निर्धारित कर सकते हैं। कोर्ट ने धारा 154 की व्याख्या भी की जिसमें संबंधित व्यक्ति का अर्थ बताया गया है।

*पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बिजली अधिनियम, 2003 के मामलों में सिविल अदालतों के अधिकार क्षेत्र को नकारा*

*बिजली अधिनियम मामलों में सिविल कोर्ट हस्तक्षेप नहीं*

*धारा 145 के तहत व्यापक रोक*

*विशेष न्यायालयों का दंड और मुआवजा निर्धारण
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बिजली अधिनियम, 2003 के अंतर्गत उत्पन्न मामलों में सिविल अदालतें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। यह निर्णय जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने पंजाब व हरियाणा से जुड़े दर्जनों मामलों पर सुनवाई करते हुए दिया।*

*अदालत ने कहा कि अगर कोई विशेष अधिनियम विशिष्ट विषयों पर विशेष न्यायिक तंत्र स्थापित करता है और उन पर सिविल अदालतों के अधिकार को स्पष्ट रूप से वर्जित करता है, तो सिविल अदालतें उन मामलों की सुनवाई नहीं कर सकतीं, भले ही कुछ विषय उस अधिनियम में स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध न हों।*

*धारा 126 और 127 के आदेशों तक सीमित*

*यह निर्णय तब आया जब अदालत के समक्ष यह प्रश्न रखा गया कि क्या सिविल अदालत का अधिकार क्षेत्र केवल धारा 126 और 127 के आदेशों तक ही सीमित है या अन्य धाराओं जैसे धारा 135 पर भी यह रोक लागू होती है।*

*कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बिजली अधिनियम की धारा 145 एक व्यापक रोक लगाती है, जो न केवल धारा 126 और 127 बल्कि धारा 135, 136, 137, 138, 139, 140 और 150 जैसे मामलों पर भी लागू होती है, बशर्ते कार्रवाई अधिनियम के अंतर्गत की गई हो।*

*अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार आवश्यक
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 135 से 140 और 150 के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय सक्षम हैं और वे दोष सिद्ध होने के बाद ही या मुआवजा निर्धारित कर सकते हैं। धारा 154(5) के अंतर्गत सिविल दायित्व का निर्धारण भी तभी किया जा सकता है जब दोषसिद्धि हो चुकी हो, जिससे अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार मिल सके।*

*कोर्ट ने धारा-154 की व्याख्या करते हुए यह भी कहा कि उसमें प्रयुक्त “संबंधित व्यक्ति” शब्द का तात्पर्य विद्युत आपूर्ति करने वाले से है, न कि उपभोक्ता से। अतः यदि कोई उपभोक्ता चोरी के आरोप से बरी हो जाता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत मुआवजे की मांग नहीं कर सकता।
धारा 151-ए के अंतर्गत जांच के अधिकार पुलिस अधिकारियों को सौंपे गए हैं और रिपोर्टें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत दाखिल की जाती हैं। हालांकि, दंड प्रक्रिया संहिता की सामान्य प्रक्रिया को बिजली अधिनियम द्वारा हटा दिया गया है।*

*धारा 145 के अंतर्गत स्पष्ट किया गया कि जिन मामलों को बिजली अधिनियम के तहत विशिष्ट रूप से सूचीबद्ध किया गया है, उन पर सिविल अदालतों में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। हालांकि, संवैधानिक सुरक्षा के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।*

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