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यूरोप में एक ऐसा देश जिस में ‘मर्दों की कमी’ बनी समस्या — महिलाएं किराए पर ‘एक घंटे के पति’ लेने को मजबूर

यूरोपीय में एक ऐसा देश जिस में पुरुष आबादी घटने के बाद महिलाएं घरेलू कामों के लिए अस्थायी पति या हैंडमैन किराए पर बुला रही हैं — जनसंख्या असंतुलन का असर रोजमर्रा की जिंदगी पर

लातविया में 15.5% अधिक महिलाएं; पुरुष-कमी के चलते महिलाएं ‘husband-for-an-hour’ सेवा ले रही हैं। सरकार और समाज को चुनौती — लिंग असंतुलन की गम्भीर स्थिति।

Delhi ब्यूरो : THE ASIA PRIME /TAP News

लातविया की ‘जनसंख्या असंतुलन’ — समस्या किस कदर गहरी

यूरोपियन देश लातविया में अब एक हैरान कर देने वाला सामाजिक असंतुलन देखने को मिल रहा है — पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में कुछ खास नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक, देश में महिलाओं की संख्या पुरुषों से करीब 15.5 % अधिक है, जो यूरोपीयन यूनियन के औसत अंतर से लगभग तीन गुना अधिक है।

इस असंतुलन का मुख्य कारण माना जा रहा है — पुरुषों की कम आयु, स्वास्थ्य-सम्बंधित समस्याएं, धूम्रपान व जीवनशैली आदि। वृद्ध आबादी में यह अंतर और भी गहरा हो जाता है: 65 वर्ष और उससे ऊपर उम्र के लोगों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से लगभग दोगुनी बताई जाती है।

परिणाम — रोजमर्रा की जिंदगी और पारिवारिक कामों में हलचल।

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एक घंटे का पति’ — लातविया में नया रुझान

पुरुष भागीदारी की कमी, घरेलू मरम्मत व रख-रखाव, पाइप व इलेक्ट्रिक काम, फर्नीचर असेंबली, टीवी या पंखा फिटिंग जैसे कामों के लिए, महिलाएं अब पारंपरिक रिश्तों पर नहीं बल्कि व्यावसायिक सेवाओं पर भरोसा कर रही हैं।

रिपोर्टों के अनुसार, कई महिलाएं अब “husband for an hour” (एक घंटे के लिए पति/हैंडमैन) नामक सेवा ले रही हैं, जिसमें उन्हें घंटे-वार पुरुष कारीगर उपलब्ध होते हैं।

कुछ प्लेटफार्म जैसे “Men With Golden Hands” या “Remontdarbi.lv” इस सेवा मुहैया कराते हैं — जहाँ महिलाएं ऑनलाइन या फोन द्वारा पुरुष कारीगर/सहायक बुला सकती हैं, जो प्लंबिंग, बढ़ई-काम, इलेक्ट्रिक रिपेयर, पेंटिंग या अन्य घरेलू मरम्मत कार्य घंटे-वार पूरा करते हैं।

सामाजिक-मानसिक प्रभाव और चुनौतियाँ

इस असामान्य प्रथा के पीछे सिर्फ गृहकार्य की जरूरत नहीं है — बल्कि यह सामाजिक और भावनात्मक अस्थिरता का संकेत भी है। कई महिलाएं कहती हैं कि काम की जगहों पर लिंग संतुलन न होने से सामाजिक संपर्क, दोस्ती-बातचीत, मानसिक सामंजस्य आदि प्रभावित हो रहे हैं।

कुछ महिलाएँ तो बेहतर साथी की तलाश में विदेश तक जाने की सोच रही हैं, क्योंकि लातविया में साथी (partner) मिलना कठिन हो गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि पुरुषों की कम आयु, अधूरी स्वास्थ्य सुविधाएँ, जीवनशैली संबंधी खराब आदतें — ये मुख्य वजहें हैं, जिनसे जैविक-सामाजिक असंतुलन बढ़ा है।

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यह स्थिति क्यों चिंता-जनक है

सिर्फ आर्थिक और घरेलू कामों के लिए ‘प्लग-एंड-प्ले’ साथी न देना, बल्कि मानव संबंधों और सहअस्तित्व की भी कीमत चुकानी पड़ रही है।

अकेलेपन, सामाजिक अलगाव, मानसिक असंतुलन — विशेषकर उन महिलाओं के लिए, जो लंबे समय तक अकेली हैं — इनका असर बढ़ सकता है।

शोध बताते हैं कि लिंग संतुलन का बिगड़ना जनसंख्या संरचना, बुज़ुर्गों की देखभाल, सामाजिक समर्थन प्रणाली, भावनात्मक स्वास्थ्य आदि पर गहरा असर डालता है।

विशेषज्ञों की राय

कुछ सामाजिक-विश्लेषकों का कहना है कि ऐसी ‘किराए की पार्टनर’ सुविधाओं में अस्थायी सहारा तो मिल सकता है, लेकिन यह असल जीवन-साथी या दीर्घकालिक सामाजिक सुरक्षा की कमी को नहीं पूरा कर सकता।

वे यह भी चेतावनी देते हैं कि अगर जनसंख्या असंतुलन को ठीक नहीं किया गया, तो भविष्य में लातविया को — बुज़ुर्गों की बढ़ती आबादी, देखभाल की कमी, समाज में अवसाद व अकेलापन जैसी समस्याएँ — झेलनी पड़ सकती हैं।

लातविया में अब यह रुझान सिर्फ एक “आवश्यकता आधारित फैसला” नहीं है — बल्कि यह एक सामाजिक चेतावनी बन चुका है। यह दिखाता है कि जब जनसंख्या असंतुलन गहरा जाए, तो न सिर्फ शादी-सम्बंधित सामाजिक संरचनाएं प्रभावित होती हैं, बल्कि रोजमर्रा की ज़िन्दगी, घरेलू काम, भावनात्मक रिश्ते, समाजिक समर्थन — सब पे असर पड़ता है।

हाथ में पेंच यह है — चाहे कितनी भी आधुनिकता हो, चाहे कितनी भी आज़ादी — मानव को रिश्तों, सामाजिक जुड़ाव और स्थायी सहभागिता की ज़रूरत होती है।

अगर लातविया जैसे देश में महिलाएँ ‘घंटों का पति’ किराए पर लेने को मजबूर हों — तो यह सिर्फ एक खबर नहीं, मानव समाज के बदलते युग का संकेत है।

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