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फतेहाबाद के जांडली खुर्द में शुद्धता की महक: किसान सुरेश और कालू पुनिया का जैविक गुड़ बना राहगीरों की पहली पसंद

चीनी के मुकाबले सेहत का खजाना है कोल्हू का देसी गुड़; किसान खुद खड़े होकर बनवा सकते हैं अपनी आंखों के सामने शुद्ध शक्कर।

फतेहाबाद के जांडली खुर्द में किसान सुरेश और कालू पुनिया ने लगाया जैविक गुड़ का कोल्हू। यहाँ राहगीर अपनी आंखों के सामने बनवा रहे हैं बिना रसायनों वाला शुद्ध गुड़ और शक्कर। जानिए चीनी से बेहतर इस देसी गुड़ के फायदे और बनने की पूरी प्रक्रिया।”

फतेहाबाद/जांडली खुर्द:

आज के दौर में जहां मिलावटखोरी ने खान-पान की शुद्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गांव जांडली खुर्द के दो प्रगतिशील किसानों ने एक मिसाल पेश की है। किसान सुरेश पुनिया और कालू पुनिया ने गांव के बस स्टैंड के नजदीक ही ऑर्गेनिक गन्ने से गुड़ और शक्कर बनाने का कोल्हू लगाया है।

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​इस कोल्हू की सबसे खास बात यह है कि यहां आने-जाने वाले राहगीर और आसपास के गांवों के लोग न केवल शुद्ध उत्पाद खरीदते हैं, बल्कि अपनी आंखों के सामने खड़े होकर अपनी पसंद का गुड़ और शक्कर भी बनवा सकते हैं।

क्यों खास है पुनिया भाइयों का यह प्रयास?

1. रसायनों से मुक्ति (Organic Approach):

सुरेश और कालू पुनिया अपने खेतों में उगे जैविक गन्ने का ही उपयोग करते हैं। बाजार में मिलने वाली सफेद चीनी में रसायनों का अधिक प्रयोग होता है, जबकि इस कोल्हू पर तैयार गुड़ आयरन, मैग्नीशियम और विटामिन जैसे प्राकृतिक खनिजों से भरपूर है।

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2. पारदर्शिता और शुद्धता:

अक्सर बाजार में मिलने वाले गुड़ में मिलावट की शिकायत रहती है, लेकिन यहाँ ग्राहक खुद गन्ने की पेराई से लेकर रस उबलने तक की पूरी प्रक्रिया देख सकते हैं।

3. स्वास्थ्य का ‘पावरहाउस’:

  • पाचन में सुधार: गुड़ कब्ज से बचाता है और पाचन तंत्र को सक्रिय करता है।
  • इम्युनिटी बूस्टर: यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और एनीमिया (खून की कमी) को रोकने में सहायक है।
  • प्रदूषण से बचाव: फेफड़ों की सफाई के लिए गुड़ को प्राकृतिक औषधि माना जाता है।

खेत से कड़ाही तक: ऐसे तैयार होता है जादुई स्वाद

​कोल्हू पर गुड़ बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह पारंपरिक है:

  1. रस निकालना: सबसे पहले उन्नत किस्म के गन्ने का रस निकाला जाता है।
  2. सफाई: रस को बड़ी कड़ाही में उबाला जाता है और प्राकृतिक तरीकों से इसकी अशुद्धियां (मैल) साफ की जाती हैं।
  3. गाढ़ापन और जमाव: रस को तब तक पकाया जाता है जब तक वह गाढ़ा न हो जाए। फिर उसे ठंडा करके ठोस गुड़ या दरदरी शक्कर का रूप दिया जाता है।
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किसानों और मिट्टी के लिए भी वरदान

​यह प्रयास न केवल स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, बल्कि आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है। जैविक गुड़ बनाने से किसानों को गन्ने का सीधा और बेहतर दाम मिल रहा है। साथ ही, गुड़ का अवशेष (वेस्ट) खेतों में खाद के रूप में भी इस्तेमाल होता है, जो मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्मजीवों को बढ़ाता है।

“हमारा उद्देश्य लोगों तक जहरमुक्त मीठा पहुंचाना है। जब लोग खुद खड़े होकर गुड़ बनवाते हैं, तो उनकी संतुष्टि ही हमारी असली कमाई है।”सुरेश पुनिया, किसान

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