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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: डिजिटल अरेस्ट ठगी के आरोपी को जमानत नहीं

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: डिजिटल अरेस्ट ठगी के आरोपियों को कोई भी अदालत जमानत नहीं दे सकेगी

सुप्रीम कोर्ट ने 72 वर्षीय महिला वकील से 3.29 करोड़ ठगी मामले में कड़ा आदेश दिया—डिजिटल अरेस्ट ठगी के आरोपी को कोई निचली अदालत जमानत नहीं देगी।

 NEW Delhi ब्यूरो: THE ASIA PRIME/ TAP News

नई दिल्ली, 27 सितंबर। साइबर अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट ठगी के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। 72 वर्षीय महिला वकील से 3.29 करोड़ रुपये की ठगी करने वाले आरोपियों को अब देश की कोई भी निचली अदालत जमानत नहीं दे सकेगी। कोर्ट ने इसे “असमान्य घटना” बताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में “असमान्य हस्तक्षेप” बेहद जरूरी है।

यह फैसला पूरे देश में तेजी से बढ़ रहे साइबर क्राइम और डिजिटल अरेस्ट जैसी नई ठगी तकनीकों पर मजबूत प्रहार माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में आरोपी यदि किसी प्रकार की राहत चाहते हैं, तो उन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा ही खटखटाना होगा।

क्या है डिजिटल अरेस्ट ठगी का मामला?

यह बेहद संगीन मामला उस समय सामने आया जब मुंबई की 72 वर्षीय महिला वकील को आरोपियों ने खुद को सरकारी एजेंसी का अधिकारी बताकर “डिजिटली अरेस्ट” कर लिया।
आरोपियों ने पीड़िता को—

गंभीर आरोपों में फंसाने की धमकी दी

वीडियो कॉल के जरिए निगरानी में रखा

मानसिक दबाव बनाकर उनसे 3.29 करोड़ रुपये ट्रांसफर करवाए

पीड़िता द्वारा FIR दर्ज करवाने के बाद आरोपी कोर्ट में जमानत की तैयारी कर रहे थे। इसी बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए बड़ा आदेश जारी किया।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा: बढ़ते साइबर क्राइम पर सख्ती जरूरी

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने बयान में कहा—

“असमान्य घटनाओं में अदालत का असमान्य हस्तक्षेप जरूरी है।”

“डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी के मामले समाज में खतरनाक रूप ले चुके हैं।”

“ऐसे अपराधियों को राहत मिलना गलत संदेश देगा।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि साइबर ठगी न केवल आर्थिक नुकसान है, बल्कि यह पीड़ितों पर मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक अत्याचार भी है।

अब आरोपी को राहत सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से ही

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सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी निचली अदालतों को स्पष्ट निर्देश दिए—

✔ डिजिटल अरेस्ट व साइबर ठगी से जुड़े इस मामले में कोई भी निचली अदालत जमानत नहीं देगी
✔ आरोपी केवल सुप्रीम कोर्ट में ही जमानत याचिका दाखिल कर सकते हैं
✔ ऐसा इसलिए ताकि आरोपी न्यायिक प्रक्रिया से बच न सकें

यह फैसला साइबर अपराधियों पर कड़ी लगाम लगाने वाला कदम माना जा रहा है।

क्यों लिया गया इतना सख्त निर्णय?

जांच में सामने आया कि—

आरोपी खुद को CBI, पुलिस या अन्य सरकारी एजेंसी के अधिकारी बताते

पीड़ित को वीडियो कॉल या चैट में “डिजिटली अरेस्ट” कर देते

कैमरा ऑन करवा कर घंटों-घंटों निगरानी करते

नौकरी, परिवार या कानूनी डर दिखाकर पैसे ट्रांसफर करवाते

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की घटनाएं लोकतांत्रिक व्यवस्था और नागरिक सुरक्षा पर बड़ा हमला हैं। ऐसे अपराधियों को तुरंत राहत मिलना “गलत उदाहरण” बना सकता है।

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वकील सरवेश गुप्ता का बयान

साइबर मामलों के विशेषज्ञ एडवोकेट सरवेश गुप्ता ने कहा—

“डिजिटल अरेस्ट सिर्फ ठगी नहीं है, यह मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला करोड़ों लोगों के लिए राहत है और साइबर अपराधियों के लिए बेहद कड़ा संकेत।”

उन्होंने बताया कि डिजिटल अरेस्ट मामले देशभर में तेजी से बढ़ रहे हैं और इस फैसले के बाद पुलिस व अदालतें और अधिक सख्ती से कार्रवाई करेंगी।

देश में क्यों बढ़ रहे हैं डिजिटल अरेस्ट मामले?विशेषज्ञों के अनुसार—

लोग सरकारी एजेंसियों की कॉल से डर जाते हैं

ठग विदेशी वॉइस IP कॉल का उपयोग करते हैं

लोग साइबर जागरूकता की कमी से धोखा खा जाते हैं

अपराधी फेक वारंट, नोटिस और एजेंसी लोगो का उपयोग करते हैं

ऐसे मामलों में कोर्ट का कड़ा रुख आम नागरिकों के लिए एक सुरक्षा कवच साबित हो सकता है।

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