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गुजरात के डॉ. गणेश बरैया की सफलता: सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई के बाद मेडिकल अधिकारी के रूप में जॉइनिंग

72% विकलांगता के बावजूद हार न मानने वाले गणेश बरैया ने सुप्रीम कोर्ट में जीत हासिल कर बनाई अपनी पहचान।

25 वर्षीय 3-फीट के डॉ. गणेश बरैया ने मेडिकल ऑफिसर की पहली नियुक्ति की शुरुआत — इरादों का बुलंद उदाहरण

नई दिल्ली / अहमदाबाद: THE ASIA PRIME/TAP News

नई दिल्ली / अहमदाबाद, 27 नवंबर 2025 — भारत ने आज एक ऐसे चिकित्सक को सम्मानित किया है, जिसने सभी बाधाओं को पार करते हुए साबित कर दिया कि कद मायने नहीं, हौसला मायने रखता है। गुजरात के 25 वर्षीय डॉ. गणेश बरैया, जिनकी लंबाई मात्र 3 फीट और वजन लगभग 20 किलो है, गुरुवार को अपनी पहली सरकारी तैनाती के रूप में मेडिकल ऑफिसर की नियुक्ति शुरू कर दी है।

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चुनौती से हार नहीं — सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई

गणेश बरैया का मेडिकल में प्रवेश आसान नहीं था। 2018 में, उनकी शारीरिक स्थिति — बौनेपन (ड्वार्फिज्म) और 72% locomotor विकलांगता — को理由 बनाकर उन्हें एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश से इनकार कर दिया गया था।

लेकिन गणेश ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने स्कूल के प्रिंसिपल, जिला कलेक्टर तथा शिक्षा मंत्री से गुहार लगाई, और अंततः अपनी आवाज़ लेकर पहुँचे भारत की सर्वोच्च अदालत तक। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें एमबीबीएस में प्रवेश मिला।

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पढ़ाई रही संघर्षपूर्ण — मगर सपना था बड़ा

भावनगर जिले के गोरखी गांव से ताल्लुक रखने वाले गणेश बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी थे। 12वीं की बोर्ड परीक्षा में उन्होंने 87% अंक हासिल किए। इसके बाद उन्होंने NEET परीक्षा भी पास की। लेकिन शारीरिक सीमाओं के कारण शुरुआत में उन्हें मेडिकल कोर्स से वंचित किया गया।

एमबीबीएस के दौरान भी उनकी चुनौतियाँ कम नहीं हुईं — anatomy dissections, clinical rounds और surgery postings के समय, सहपाठी और प्रोफेसरों को उन्हें आगे की पंक्तियों में बैठाना पड़ता था, या ऑपरेशन थिएटर में देखने के लिए कंधों पर उठा कर ले जाना पड़ता था।

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आज नई शुरुआत — पहली पोस्टिंग के साथ

गुजरात सरकार द्वारा मेडिकल ऑफिसर के रूप में उनकी पहली पोस्टिंग की मंजूरी मिल चुकी है, और आज उन्होंने अपने नए पद पर पदभार ग्रहण कर लिया। इस घटना को पत्रकारिता जगत और आम लोग प्रेरणादायक बता रहे हैं — क्योंकि उन्होंने साबित किया कि इच्छाशक्ति से हर बाधा पार की जा सकती है।

उनका सपना अब सिर्फ अपना नहीं — अपने परिवार के लिए पक्का घर बनाना भी है। भावनगर जिले के किसान माता-पिता और सात बहनों वाले इस परिवार के लिए गणेश की सफलता नई उम्मीद लेकर आई है।

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समाज के लिए प्रेरणा — समान अवसरों की जरुरत

डॉ. गणेश की कहानी हमें एक संजीदा संदेश देती है: अगर व्यवस्था में समान अवसर हों — चाहे कद हो, विकलांगता हो या आर्थिक पृष्ठभूमि — तो किसी की भी प्रतिभा डटी रह सकती है। उनके संघर्ष ने यह साबित किया कि डॉक्टर बनने के लिए कद नहीं, दिल और हौसला चाहिए।

इस उपलब्धि से न सिर्फ उन्होंने अपने लिए रास्ता बनाया, बल्कि उन सभी के लिए उम्मीद जगाई जो अपनी Physical Disability को अपनी पहचान नहीं बल्कि अपनी कमी समझते हैं।

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