छठ पूजा 2025: उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ संपन्न हुआ चार दिवसीय महापर्व, जानिए पूजा विधि, प्रसाद और हर दिन का महत्व

छठ पूजा का चार दिवसीय महापर्व बड़ी श्रद्धा और शुद्धता के साथ संपन्न होता है। इसमें सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है। जानिए कब-क्या किया जाता है, क्या खाया जाता है, कौन-से प्रसाद बनते हैं और अंतिम दिन ‘उषा अर्घ्य’ का धार्मिक महत्व क्या है।
दिल्ली ब्यूरो: THE ASIA PRIME / TAP News
🕉️🌞 छठ पूजा 2025 – आस्था, तप और पवित्रता का महापर्व
छठ पूजा उत्तर भारत का सबसे प्रमुख लोक पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली सहित पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है।
चार दिनों तक चलने वाला यह अनुष्ठान व्रती (उपवास करने वाले) की तपस्या, शुद्धता और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है।
🌞 छठ पूजा के चार दिन – क्रमवार विधि और महत्व
1️⃣ पहला दिन – नहाय खाय (9 नवंबर 2025)
इस दिन व्रती नदी, तालाब या किसी पवित्र जलाशय में स्नान करके अपने घर की सफाई करते हैं।
घर में शुद्ध भोजन बनाया जाता है और व्रती ‘लौकी-भात’ व ‘चना दाल’ खाते हैं।
यही दिन छठ व्रत की शुरुआत का प्रतीक होता है।
2️⃣ दूसरा दिन – खरना (10 नवंबर 2025)
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद पूजा करते हैं।
गुड़ और दूध से बनी खीर, रोटी और फल का प्रसाद तैयार होता है।
प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है।
3️⃣ तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (11 नवंबर 2025)
व्रती और श्रद्धालु नदी या तालाब के किनारे एकत्र होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
इस दिन घाटों पर अद्भुत दृश्य दिखाई देता है — महिलाएँ मिट्टी के दीये जलाकर, सूप-दउरा में ठेकुआ, फल और गुड़ के प्रसाद के साथ सूर्य देव को प्रणाम करती हैं।
4️⃣ चौथा दिन – उषा अर्घ्य (12 नवंबर 2025)
छठ पूजा के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
यह दिन ‘उषा अर्घ्य’ कहलाता है। माना जाता है कि उगते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में नई ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है।
🌾 छठ पूजा का प्रसाद और उसका महत्व
छठ पूजा का प्रसाद अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसमें शामिल हैं –
ठेकुआ: आटा, गुड़ और घी से बना पारंपरिक प्रसाद।
चावल के लड्डू: गुड़ और देसी घी से तैयार।
गन्ना, केला, नारियल, सिंघाड़ा, संतरा: मौसमी फल।
मूली और अदरक का पौधा: स्वास्थ्य और शुभता का प्रतीक।
सूप और दउरा: बाँस से बनी टोकरी में ही सभी प्रसाद रखे जाते हैं।
हर वस्तु को शुद्ध जल से धोकर, बिना नमक और प्याज-लहसुन के बनाया जाता है। यह पर्व पवित्रता और स्वच्छता का सजीव उदाहरण है।
🌞 छठी मैया का पौराणिक महत्व
मान्यता है कि छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं।
उन्हें देवसेना (प्रकृति का छठा अंश) या षष्ठी देवी कहा जाता है।
वे संतान की रक्षा, दीर्घायु और परिवार की समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य दोनों की पूजा की जाती है — यह जीवन के उतार-चढ़ाव और संतुलन का प्रतीक है।
🌸 छट पूजा के इस पर्व की विशेषताएँ
🙏 पुरोहित की आवश्यकता नहीं: यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें पूजा स्वयं व्रती करते हैं।
🌿 शुद्धता और अनुशासन: व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं।
🪔 सामुदायिक एकता: गाँव, शहर, मोहल्ले — सभी मिलकर घाट सजाते हैं।
💫 आध्यात्मिक शांति: माना जाता है कि इस व्रत से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।
छट पूजा अंतिम अर्घ्य का महत्व
‘उषा अर्घ्य’ केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भक्ति, तप और समर्पण का चरम बिंदु है।
यह 36 घंटे के कठोर व्रत का समापन है, जो व्रती और उनके परिवार को सकारात्मक ऊर्जा और आंतरिक शांति प्रदान करता है।
इस अर्घ्य के बाद प्रसाद वितरण होता है और भक्त सूर्य देव और छठी मैया से आशीर्वाद लेकर जीवन में नई शुरुआत करते हैं।