
भारत का कपड़ा उद्योग सदियों से कॉटन फाइबर पर आधारित रहा है, लेकिन अब तस्वीर तेजी से बदल रही है। 2013-14 तक कपड़े बनाने में 60% कॉटन फाइबर और 40% कृत्रिम फाइबर (जैसे पॉलिएस्टर, नायलॉन और रेयान) का इस्तेमाल होता था। लेकिन अब हालात उलट चुके हैं। वर्तमान समय में कपड़ा उत्पादन में 55% कृत्रिम फाइबर और केवल 45% कॉटन फाइबर का उपयोग हो रहा है।
Cotton बनाम Artificial Fibre
Cotton Fibre: इसे तैयार करने में लाखों किसान, छोटे व्यापारी और मिलर शामिल होते हैं। यह रोजगार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
Artificial Fibre: इसे बनाने में केवल कुछ उद्योगपति शामिल होते हैं। कच्चे तेल से बनने वाले इस रेशे के उत्पादन में बहुत कम लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन मुनाफा केवल बड़े पूंजीपतियों तक सीमित रहता है।
Cotton के उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई
देश में कॉटन उत्पादन 2013-14 में 390 लाख गांठ था, जो अब घटकर मात्र 290 लाख गांठ रह गया है। यानी एक दशक में उत्पादन में लगभग 100 लाख गांठ की कमी आई है।
सरकारीकी किसानों व कपास के प्रति उदासीनता
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार कॉटन फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कोई गंभीर कदम नहीं उठा रही।
नई तकनीक और शोध की कमी
किसानों को समर्थन मूल्य (MSP) और प्रोत्साहन का अभाव
सरकार की ओर से कृत्रिम फाइबर उद्योग को बढ़ावा
इसका सीधा असर लाखों किसानों और मजदूरों की आमदनी पर पड़ रहा है।
आर्थिक और सामाजिक स्तर पर यापक असर
1. कॉटन फाइबर से जुड़े लाखों किसानों की आय में कमी
2. हजारों छोटे व्यापारी और मिलर को काम का संकट
3. रोजगार के अवसरों में भारी गिरावट
4. पूंजीपतियों के कृत्रिम फाइबर उद्योग को बढ़ावा
किसानों व सरकार को चिंता का विषय
अगर यही रुझान जारी रहा तो आने वाले वर्षों में देश के कपड़ा उद्योग में किसानों की भूमिका और भी कम हो सकती है। जबकि कॉटन फाइबर का महत्व केवल रोजगार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि आधारित उद्योगों की नींव है।
सवाल यह है कि क्या सरकार कॉटन उत्पादन बढ़ाने और किसानों को समर्थन देने के लिए ठोस कदम उठाएगी या फिर कृत्रिम फाइबर उद्योग का दबदबा और बढ़ेगा?