
लाल किले से मोदी बोले – “हम दीवार बनकर खड़े हैं”, लेकिन किसानों की दीवार कौन बनेगा?
नई दिल्ली | The Asia Prime
7 अगस्त को आयोजित एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों, दुग्ध उत्पादकों और मछुआरों के हितों की रक्षा का संकल्प दोहराते हुए कहा:
“हम किसानों के हित पर कभी समझौता नहीं करेंगे। मुझे व्यक्तिगत तौर पर भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूँ।”
प्रधानमंत्री के इस बयान के कुछ ही दिनों बाद, केंद्र सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने किसानों और नीति विशेषज्ञों को चौंका दिया है। यह फैसला है – कपास आयात पर लगे 11% शुल्क को खत्म करना।
सरकार का बड़ा फैसला: कपास आयात शुल्क खत्म
केंद्र सरकार ने घरेलू बाज़ार में बढ़ती कीमतों और कपास की कमी से निपटने के लिए 40 दिनों के लिए कपास पर 11% आयात शुल्क हटाने का ऐलान किया है। यह राहत 30 सितंबर 2025 तक लागू रहेगी।
सरकार का तर्क है कि इस कदम से:
टेक्सटाइल उद्योग को राहत मिलेगी।
त्योहारी सीज़न से पहले कपड़ा और धागा सस्ता होगा।
निर्यातकों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में फायदा मिलेगा।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) के अध्यक्ष अतुल गणात्रा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा –
“सरकार ने हमारी मांग मान ली है। इससे उद्योग को बड़ी राहत मिलेगी।”
आंकड़ों से समझें कपास का खेल
वित्त वर्ष 2025 में भारत का कपास आयात 107% बढ़कर 1.20 अरब डॉलर (₹10,441 करोड़) हो गया।
वित्त वर्ष 2024 में आयात केवल ₹5,040 करोड़ था।
भारत के प्रमुख आपूर्तिकर्ता देश:
ऑस्ट्रेलिया – ₹2,246 करोड़
अमेरिका – ₹2,037 करोड़
ब्राज़ील – ₹1,573 करोड़
मिस्र – ₹1,012 करोड़
महत्वपूर्ण तथ्य:
भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA समझौते के तहत 51,000 मीट्रिक टन कपास पहले से ही शुल्क-मुक्त आता है। अब अमेरिका को भी इस छूट से भारी फायदा मिलेगा।
किसान की नाराज़गी: “जय आयात?”
किसानों का गुस्सा साफ है। उनका कहना है कि सरकार किसानों की उपज की अनदेखी कर रही है।
किसानों के आरोप:
“हमारी खड़ी फसल की सुनवाई नहीं होती।”
“न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी नहीं।”
“बकाया भुगतान की कोई पक्की तारीख नहीं।”
“सरकार ने कपास मिल मालिकों और विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए टैक्स फ्री आयात खोल दिया।”
गुजरात और महाराष्ट्र जैसे कपास उत्पादक राज्यों के किसान खुलकर कह रहे हैं कि –
👉 “कपास बोया किसान ने, लेकिन फायदा मिला अमेरिकी सप्लायर को।”
किसानों ने व्यंग्य में कहा –
“पहले नारा था जय जवान, जय किसान। अब नारा है जय जवान, जय विज्ञान… और जय आयात!”
इंडस्ट्री का पक्ष: राहत की सांस
जहां किसान विरोध कर रहे हैं, वहीं कपड़ा मिलें और निर्यातक इस फैसले से खुश हैं। उनका तर्क है:
भारत में कपास की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कीमतों से 10-12% ज्यादा हैं।
महंगे कच्चे माल के कारण धागा और कपड़ा निर्यात प्रभावित हो रहा था।
सस्ते आयात से इंडस्ट्री को प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलेगी।
कपड़ा उद्योग से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि –
“त्योहारी सीज़न से पहले यह कदम बहुत जरूरी था। वरना लाखों लोगों की रोज़गार पर असर पड़ता।”
किसान बनाम इंडस्ट्री: कौन जीतेगा?
यह मुद्दा सीधा किसान बनाम इंडस्ट्री की बहस में बदल गया है।
किसानों को डर है कि आयात सस्ता होने से उनकी फसल की मांग घट जाएगी और दाम गिरेंगे।
मिल मालिक कहते हैं कि अगर सस्ता कच्चा माल नहीं मिलेगा, तो उनकी फैक्ट्रियां बंद हो जाएंगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि –
👉 सरकार को चाहिए कि वह MSP की गारंटी दे, ताकि किसानों का हित सुरक्षित रहे। साथ ही इंडस्ट्री के लिए संतुलन भी बनाए।
राजनीतिक रंग
यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब प्रधानमंत्री मोदी किसानों के समर्थन की बात कर रहे हैं। स्वामीनाथन सम्मेलन में उन्होंने किसानों के लिए “दीवार” बनने की बात कही थी, लेकिन किसानों का कहना है कि –
“सरकार किसानों के लिए नहीं, बल्कि विदेशी सप्लायर्स और मिल मालिकों के लिए दीवार बन रही है।”
विपक्षी दलों ने भी सरकार पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि “मोदी सरकार किसानों से वादे तो करती है, लेकिन नीतियां इंडस्ट्री और कॉर्पोरेट घरानों के हित में बनाती है।”
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
भारत कपास उत्पादन में दुनिया का अग्रणी देश है। बावजूद इसके, लगातार बढ़ते आयात ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्यों भारत अपनी ही उपज का उपयोग नहीं कर पा रहा?
क्या घरेलू किसान की उपज वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी नहीं है?
क्या आयात आधारित समाधान स्थायी है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यही रुझान जारी रहा, तो भारत धीरे-धीरे विदेशी कपास पर निर्भर हो जाएगा और किसान संकट गहराएगा।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि सरकार किसानों के लिए “दीवार” है। लेकिन कपास पर आयात शुल्क खत्म करने का फैसला किसानों की इस “दीवार” को कमजोर करता दिख रहा है।
सवाल यह है कि –
क्या यह फैसला केवल अल्पकालिक राहत है?
या फिर यह भारत के किसानों को लंबे समय तक नुकसान पहुंचाएगा?
किसान और इंडस्ट्री के बीच यह tug of war अभी और तेज़ हो सकता है।