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विपक्ष खा गया 4 लाख गरीबों की थाली

बीपीएल परिवारों की आशा की किरण और छिनता सहारा

विपक्ष खा गया 4 लाख गरीबों की थाली

// बीपीएल परिवारों की आशा की किरण और छिनता सहारा

रमेश, एक रिक्शा चालक, और उसकी पत्नी, सीता, कई सालों से गरीबी की मार झेल रहे थे। दो छोटे बच्चों के साथ, उनका जीवन हर दिन एक संघर्ष था। जब सरकार ने नए बीपीएल कार्ड बनाने की घोषणा की, तो रमेश और सीता ने भी आवेदन किया। उन्हें उम्मीद की एक किरण दिखाई दी – राशन, स्वास्थ्य सेवा और बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ सहारा।
खुशी की लहर तब दौड़ पड़ी जब उनका बीपीएल कार्ड बन गया। उस कार्ड ने उनके परिवार के लिए एक सुरक्षा कवच का काम किया। वे अब सस्ते दरों पर राशन खरीद सकते थे, बच्चों के बीमार होने पर थोड़ा कम चिंतित रहते थे, और उन्हें उम्मीद थी कि उनके बच्चे भी पढ़-लिखकर बेहतर भविष्य बना पाएंगे।
लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी। अचानक, गाँव में खबर फैली कि सरकार बड़ी संख्या में बीपीएल कार्ड रद्द करने वाली है। रमेश और सीता डर गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अचानक ऐसा क्यों हो रहा है। क्या उनके कार्ड में कोई गलती थी? क्या सरकार को अब उनकी ज़रूरत नहीं रही?

जब रमेश खाद्य आपूर्ति विभाग कार्यालय गया, तो उसे बताया गया कि नए नियमों के अनुसार, कुछ लोगों के कार्ड रद्द किए जा रहे हैं। कारण अस्पष्ट थे, और किसी के पास संतोषजनक जवाब नहीं था। रमेश और सीता की रातों की नींद उड़ गई। जिस सहारे पर वे मुश्किल से टिके थे, वह अब उनसे छीना जा रहा था।
सीता उदास होकर बोली, “हमने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा। फिर हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?”
रमेश ने अपनी पत्नी को ढांढस बंधाया, लेकिन उसके अंदर भी डर और निराशा का भाव था। वे जानते थे कि बिना बीपीएल कार्ड के उनका जीवन और भी कठिन हो जाएगा। बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना, उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य का ध्यान रखना एक पहाड़ जैसा लगने लगा था।
गाँव के कई अन्य गरीब परिवार भी इसी स्थिति से गुजर रहे थे। जिन लोगों को कभी उम्मीद की एक किरण दिखाई दी थी, अब उनके सामने अंधकार छा रहा था। वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्यों उनकी भलाई के लिए बनाया गया कार्ड अब उनके लिए मुसीबत बन रहा है।
यह कहानी उन अनगिनत गरीब परिवारों की व्यथा को दर्शाती है।
जो सरकारी नीतियों में अचानक बदलाव के कारण मुश्किलों का सामना करते हैं। उनके लिए, बीपीएल कार्ड सिर्फ एक प्लास्टिक का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक उम्मीद और जीने का सहारा होता है। जब यह सहारा छिन जाता है, तो उनके सामने अनिश्चितता और निराशा का गहरा बादल छा जाता है। यह सवाल उठता है कि क्या नीतियां बनाते समय गरीबों के हितों का ध्यान रखा जा रहा है और क्या उनके लिए एक स्थिर और भरोसेमंद व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकती है।

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